Updated December 24th, 2018 at 12:57 IST
विकलांगता से जीत कर भी प्रशासन के आगे हार गया ये छात्र! ट्राइसिकल के लिए 'सर्टिफिकेट' बना रोड़ा
एक स्थानीय अखबार में बातचीत के दौरान छात्र ने बताया कि वह कई शिविरों में जा चुका है लेकिन उसे ट्राइसिकल देने हर बार मना कर दिया जाता.
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छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में स्थानीय प्रशासन का अमानवीय रवैया सामने आया है, जहां एक प्राइमरी स्कूल के छात्र को (जिसके हाथ पैर नहीं है) विकलांगता सर्टिफिकेट के बिना कथित तौर पर ट्राइसाइकिल देने से इनकार कर दिया.
एक स्थानीय अखबार में बातचीत के दौरान छात्र ने बताया कि वह कई शिविरों में जा चुका है लेकिन उसे ट्राइसिकल देने हर बार मना कर दिया जाता. मामले के तूल पकड़े जाने के बाद रायगढ़ के प्रभारी सीएमएचओ ने सफाई देते हुए कहा कि धरमजयगढ़ सिविल अस्पताल में हड्डी रोग विशेषज्ञ नहीं होने की वजह से प्रमाणपत्र मिलने में देरी हो रही है.
बता दें, मामला रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़- खरसिया मार्ग का बताया जा रहा है. यहां के निवासी मजदूर कृष्ण कुमार के 9 साल के बेटे ने दैनिक भास्कार को बताया कि उनका बेटा हाथ- पैर से विकलांग है. जिसकी वजह से उसके दादा घासीराम रोज उसे उठाकर स्कूल ले छोड़कर और लेकर आते हैं. यहीं नहीं कृष्ण के अनुसार गोविंद के लिए स्कूल में खासतौर पर मौखिक परीक्षा का आयोजन किया जाता है. क्योंकि हाथ और पैर ना होने की वजह से वो लिखने के लिए मुंह का इस्तेमाल करता है.
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गोविंद ने आगे दावा किया कि उसपर विकलांग सर्टिफिकेट ना होने के कारण उसे ट्राईसिकल नहीं दी जाती. वो आगे कहते हैं कि कई बार सोचता हूं कि अगर ट्राइसिकल से स्कूल जाऊंगा तो बड़ा मजा आएगा. लेकिन अब लग रहा है
गोविंद आगे कहते हैं कि वो अपनी फरियाद लेकर रायगढ़ कलेक्ट्रेट भी गए लेकिन फिर भी उन्हें ट्राइसिकल नहीं मिली.
वहीं दूसरी ओर स्कूल में होने वाली परेशानी के बारे में बात करते हुए कहा कि अक्सर साथ में पढ़ने वाले छात्र मेरी मदद करते हैं. हाथ पैर नहीं होने की वजह से मैं मुंह से लिखने की कोशिश करता हूं लेकिन कई बार पेन गिर जाता है, तो मेरे साथी उठाकर मुंह में रख देते हैं. स्कूल लेने जाना हो या छोड़कर आना का सारा जिम्मा उनके दादा पर है.
उनका संघर्ष यहीं नहीं खत्म होता बल्कि उनको खाना खाने के लिए छुट्टी होने के बाद अपने दादा का इंतजार करना पड़ता है.
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Published December 24th, 2018 at 12:57 IST
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