Updated April 7th, 2020 at 20:07 IST
महामारी के इस दौर में सरकार को काम करने दें-सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस से सबंधित कोई भी फैसला देने से मना कर दिया है और कहा है कि ऐसे समय में सरकार को काम करने दें ।
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कोरोना वायरस के चलते पलायन करने वाले प्रवासी मजदूरों को आर्थिक मदद की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल कोई भी आदेश देने से इनकार कर दिया।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि महामारी के इस दौर में सरकार को उसका काम करने देना चाहिए। हम सरकार के काम में अगले 10-15 दिन कोई दखल नहीं देना चाहते। साथ ही अदालत सरकार पर अपना निर्णय नहीं थोप सकती। वे विशेषज्ञ नहीं है। याचिकाकर्ता को सरकार का जवाब देने का समय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 13 अप्रैल तक सुनवाई टाल दी है।
याचिकाकर्ता निखिल डे और अरुणा रॉय की तरफ से दाखिल की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि वो इन मांगों पर फिलहाल कोई आदेश पारित नहीं करेगी। याचिकाकर्ता की तरफ से एडवोकेट प्रशांत भूषण पेश हुए। वीडियोकॉन्फ्रेसिंग के जरिये हो रही सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस.ए बोबड़े, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच सुनवाई कर रही थी।
याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि 4 लाख ज़्यादा लोग शेल्टर होम में रह रहे है। जहां सोशल डिस्टेंसिग की बात वहां बेमानी है। अगर शेल्टर होम में रह रहे लोगों में से किसी एक को भी कोरोना संक्रमण हो गया तो वहां रह रहे सभी लोगों का जीवन मुश्किल में डाल देगा। प्रशांत भूषण ने अदालत से ये भी मांग की कि शेल्टर में रह रहे लोगों को अपने घर लौटने की इजाजत मिलनी चाहिए।
प्रशांत भूषण ने कहा कि 40 फीसदी से ज़्यादा लोग ऐसे है, जिन्होंने गाँव जाने की कोशिश नहीं की। वो शहरों में अपने घरों में है। पर वो एक वक्त का खाना खरीदने की स्थिति में भी नही है। उन्हें भी पैसा दिया जाना चाहिए।
प्रशांत भूषण के आरोपों पर केन्द्र सरकार की तरफ से जवाब देते हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार हर स्थिति पर नज़र बनाए रखे हुए है। सरकार हर सम्भव कदम उठा रही है, मजदूरों को भोजन और जरूरी सामान दिया जा रहा है। साथ ही उनकी शिकायतों और कमियों को दूर करने के लिये हेल्पलाइन भी बनाई गई है।
इससे पहले प्रवासी मजदूरों के मामले में केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा भी दायर किया था। केन्द्र सरकार ने हलफनामें में विस्तार से अदालत को बताया था कि पलायन करने वाले प्रवासी मजदूरों को लेकर क्या काम किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रशांत भूषण के आरोपों पर सवाल उठाते हुए पूछा कि बिना सरकार की स्टेटस रिपोर्ट देखे आप कैसे कह सकते है कि सरकार ने इस मसले पर कुछ काम नहीं किया है।
कोर्ट के सवाल पर प्रशांत भूषण ने दलील दी कि सरकार ने शेल्टर होम में खाना और मकान मालिकों द्वारा किराया न वसूलने को लेकर दो आदेश जारी किए। लेकिन दोनो पर अमल नहीं हुआ है।
लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने कोई आदेश पारित करने से साफ इन्कार करते हुए कहा कि हम आज इस स्टेज पर सरकार से बेहतर फैसला नहीं ले सकते। और अगले 10-15 दिन तक भी हम सरकार के काम में दखल नही दे सकते। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण से कहा कि आप पहले सरकार की स्टेटस रिपोर्ट पढ़िए, उसके बाद ही हम हम सोमवार 13 अप्रैल को सुनवाई करेगें।
दरअसल कोरोना वायरस के चलते प्रवासी मजदूरों के पलायन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहले भी कई याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय और निखिल डे की ओर से दाखिल इस याचिका में लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान करने, उन प्रवासी मजदूरों को अस्थाई जॉब कार्ड मुहैया कराने जो अपने गांव लौट गए हैं और मनरेगा में 100 दिनों के काम की अवधि को 200 दिन करने की मांग की गई है।
केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, पलायन अब बर्दास्त नहीं
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Published April 7th, 2020 at 20:07 IST
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