Updated May 18th, 2020 at 16:18 IST

आईएफएस संजीव चतुर्वेदी ने किया कमाल, देवभूमि से गायब होतीं साढ़े 11 सौ वनस्पतियों को बचाया

2002 बैच के आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की मेहनत की वजह से ही उत्तराखंड को कश्मीर के श्रीनगर की तरह हालैंड के फूलों वाला ट्यूलिप गार्डन नसीब हुआ।

Reported by: Amit Bajpayee
| Image:self
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देश के चर्चित आईएएफएस अफसर संजीव चतुर्वेदी ने उत्तराखंड में करिश्मा कर दिखाया। उन्होंने देवभूमि उत्तराखंड को न केवल नए-नए फूलों से महकाया बल्कि दुर्लभ किस्म की साढ़े 11 सौ वनस्पतियों और जड़ी-बूटियों को भी गायब होने से बचाया है।

2002 बैच के आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की मेहनत की वजह से ही उत्तराखंड को कश्मीर के श्रीनगर की तरह हालैंड के फूलों वाला ट्यूलिप गार्डन नसीब हुआ।

उत्तराखंड के मुनस्यारी स्थित ट्यूलिप गार्डन में इस बार जब हालैंड वाले फूल खिले तो फिर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तस्वीरें ट्वीट कर इसे अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बताया था। जिसके बाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी बधाई देने से नहीं चूके थे। उत्तराखंड फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में मुख्य वन संरक्षक के पद पर कार्यरत संजीव चतुर्वेदी के लिए मुनस्यारी की तुलना में हल्द्वानी में ट्यूलिप को खिलाना ज्यादा चुनौती भरा रहा। क्योंकि हालैंड की तरह ही मुनस्यारी भी ठंडा स्थान है, लेकिन हल्द्वानी का तापमान यूपी के रामपुर और मुरादाबाद जैसै जिलों के बराबर रहता है। फिर भी लगातार दो साल की कोशिशों के बावजूद संजीव चतुर्वेदी हल्द्वानी में भी हालैंड का ट्यूलिप फूल खिलाने में सफल रहे। संजीव चतुर्वदेी ट्यूलिप से भी सुंदर दिखने वाले आर्किड फूल की 65 प्रजातियों को संरक्षित कर चुके हैं।


पिछले काफी समय से मिशन मोड में आकर संजीव चतुर्वेदी दुर्लभ और औषधीय वनस्पतियों के संरक्षण में जुटे रहे। जिसका नतीजा है कि आज हल्द्वानी से लेकर कई रेंज में साढ़े 11 वनस्पतियां संरक्षित हुईं हैं। कमाल की बात है कि उत्तराखंड में इसके लिए कभी बजट भी नहीं बढ़ाया गया। 2011-12 में भी करीब तीन करोड़ रुपये थे और आज 2020-21 में ही उतनी ही धनराशि आवंटित होती है। फिर भी वह पहाड़ पर गुलशन खिलाने में जुटे रहे।

मुख्य वन संरक्षक पद पर तैनात संजीव चतुर्वेदी की सहायता के लिए उत्तराखंड में कुल दो डीएफओ, दो एसडीओ स्तर के अधिकारियों के पद खाली हैं। कुल आठ रेंज अधिकारियों के पद भी आधे खाली हैं। जिससे कुमायूं, गढ़वाल, पिथौरागढ़, रानीखेत, नैनीताल, हल्द्वानी आदि इलाकों में मौजूद नर्सरीज की निगरानी में भारी दिक्कतें भी झेलनी पड़तीं हैं। फिर भी संजीव चतुर्वेदी हार नहीं माने। संजीव चतुर्वेदी पर वनस्पितयों और फूलों को सहेजने की धुन ऐसी सवार रही कि हल्द्वानी स्थित मुख्यालय से वह 12-12 घंटे जोखिम भरा सफर कर उत्तराखंड के कोने-कोने में वनस्पतियों का सर्वे करने में जुटे रहे।

आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने उत्तराखंड में 80 से अधिक दुर्लभ जड़ी-बूटियों को संरक्षित करने में सफलता पाई है।  लालकुआं और भुजियाघाट में कुल 96 तरह के एरोमैटिक प्लांट(खुशबूदार) की व्यवस्था की है। कालिका रेंज में घासों की 52 तरह की प्रजातियां हैं। इसी तरह औषधीय गुणों की खान तुलसी की डेढ़ दर्जन प्रजातियों का लालकुआं और देहरादून रेंज में संरक्षण चल रहा है। जैव विविधता के क्षेत्र में कुल 14 प्रोजेक्ट को संजीव चतुर्वेदी ने धरातल पर उतारा है। जिसमें हल्द्वानी और पिथौरागढ़ रेंज में ट्यूलिप गार्डन का प्रोजेक्ट पूरा हुआ है। खास बात है कि हल्द्वानी में बुद्ध वाटिका बनाई है, जिसमें गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़े 13 तरह के पेड़-पौधे हैं। संजीव चतुर्वेदी ने हल्द्वानी में भारत वाटिका भी तैयार की है, जिसमें देश के सभी राज्यों के प्रमुख पेड़-पौधे हैं। संजीव चतुर्वदी ने ओक, रिंगल, वाइल्ड क्लाइंबर्स आदि वनस्पतियों को संरक्षित करने में उन्होंने सफलता हासिल की है।

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Published May 18th, 2020 at 16:18 IST

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