Updated March 16th, 2020 at 20:23 IST
मध्यप्रदेश की सियासी जंग पहुंची सुप्रीम कोर्ट, कल सुनवाई
पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और 9 विधायकों की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि कमलनाथ सरकार बहुमत खो चुकी है।
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मध्यप्रदेश विधानसभा में बहुमत साबित करने को लेकर चल रही जंग अब सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर पहुंच गई है। विधानसभा सत्र के 26 मार्च तक स्थगित होने के तुरंत बाद ही पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत 9 विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सत्र के टाले जाने के फैसले को चुनौती दे दी। याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट 12 घंटे में फ्लोर टेस्ट कराए जाने का आदेश पारित करे। सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई की मांग को स्वीकार करते हुए मंगलवार को सुनवाई करने का फैसला लिया है। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच सुनवाई करेगी।
पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और 9 विधायकों की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि कमलनाथ सरकार बहुमत खो चुकी है। इस सरकार के एक दिन भी अब सत्ता में बने रहने का अब कोई नैतिक, क़ानूनी, लोकतांत्रिक और सवैंधानिक अधिकार नहीं है । सीएम कमलनाथ की ओर से अल्पमत को बहुमत में बदलने के लिए विधायकों को धमकी से लेकर प्रलोभन दिये जा रहे है, यहां तक कि विधायको को खरीद फ़रोख़्त करने की कोशिश की जा रही है।
शिवराज सिंह चौहान और बाकी 9 विधामकों की ओर से दायर याचिका में ये भी कहा गया है कि सरकार को अब तक समर्थन दे रहे 22 विधायक 10 मार्च को ही इस्तीफा दे चुके है । इनमें से छह विधायकों के इस्तीफे स्पीकर ने मंजूर भी कर लिए है, ऐसी सूरत में ये सरकार बहुमत खो चुकी है। लिहाजा फ्लोर टेस्ट अब संवैधानिक बाध्यता है और फ्लोर टेस्ट जल्द से जल्द कराया जाए।
याचिका में मुख्यमंत्री कमलनाथ पर आरोप लगाया गया है कि उन्होने जानबूझकर कर राज्यपाल के आदेशों की अवहेलना की है। याचिका के मुताबिक गवर्नर ने 14 मार्च को ही बजट सत्र की शुरूआत वाले दिन, 16 मार्च को मुख्यमंत्री को बहुमत परीक्षण करने को कहा। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री ने राज्यपाल के आदेश की अवहेलना की है लिहाजा अब फ्लोर टेस्ट को टालना खरीद फ़रोख़्त को ही बढ़ावा देगा।
याचिकाकर्ताओं ने 1994 के एस आर बोम्मई समेत कई SC के कई पुराने फैसलो का हवाला दिया है, और कहा है कि इन फैसलों में दी गई व्यवस्था के मुताबिक विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद अगर सरकार अल्पमत में नज़र आ रही है, तो राज्यपाल को सदन के पटल पर बहुमत परीक्षण का आदेश देना चाहिए, और राज्यपाल ने ऐसा ही किया है।
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Published March 16th, 2020 at 20:23 IST
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