Updated January 14th, 2019 at 17:05 IST
जस्टिस सीकरी के समर्थन में उतरे मारकंडेय काटजू, बोले- "पूरे झूठ से कई गुना खतरनाक होता है आधा सच"
बता दें, काटजू का यह बयान एक समाचार वेबसाइट में लिखे गए लेख के मद्देनजर आया है
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जस्टिस ए के सीकरी द्वारा राष्ट्रमंडल सचिवालय मध्यस्थता न्यायाधिकरण (सीएसएटी) में अध्यक्ष/सदस्य बनाने वाले प्रस्ताव पर अपनी सहमति वापस लिए जाने के बाद अब पूर्व जस्टिस मार्कण्डेय काटजू उनके समर्थन में कूद पड़े हैं.
काटजू ने सोमवार को अपने अधिकारिक फेसबुक पेज पर एक लंबा चौड़ा पोस्ट लिखा जहां जस्टिस ए के सीकरी को "उत्कृष्ट, पूरी तरह से ईमानदार, बेहद सक्षम और कड़ी मेहनत" करने वाले बताते हुए उनकी निष्ठा पर प्रश्न उठाने वाले मीडिया संस्थानों को आड़े हाथों लिया.
बता दें, काटजू का यह बयान एक समाचार वेबसाइट में लिखे गए लेख के मद्देनजर आया है, जिसमें जस्टिस सीकरी को सीएसएटी के सदस्य के रूप में नियुक्त करने के नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले को 'प्लम पोस्टिंग' कहा गया है.
उन्होंने लिखा, "जहां एक तरफ भारत में दुष्ट, भ्रष्ट और धूर्त अधिकारी हैं. दूसरी तरफ कुछ ईमानदार, कड़ी मेहनत और सक्षम व्यक्ति भी हैं. लेकिन दुख की बात ये है कि मीडिया को अच्छे लोग दिखाई नहीं देते.
जिसके बाद पूर्व न्यायधीश काटजू ने जस्टिस सीकरी का जिक्र करते हुए अपने अनुभव भी साझा किए. उन्होंने बताया कि जब वो दिल्ली उच्च न्यायलय में मुख्य न्यायधीश का पद संम्भाल रहे थे. तब जस्टिस ए के सीकरी भी उसी अदालत में उनके अधीनस्थ थे. चीफ जस्टिस उन्हें ना सिर्फ न्यायिक काम देखने पड़ते थे बल्कि प्रशासनिक काम भी उनके जिम्मे था. जिसकी वजह से वो अक्सर कोर्ट का काम खत्म होने के बाद भी रात 8बजे तक रूक कर प्रशासनिक काम खत्म किया करते थे. जब वो काम खत्म करने वाले होते तो वो अक्सर इस बात की पूछताज करते कि कौन न्यायधीश अपने चैंबर में तो नहीं है और मुझे बताया जाता कि जस्टिस सीकरी उस वक्त भी वहां रुककर अपने फैसले तैयार कर रहे होते थे. मैं उनके चेंबर में जाता और उनसे घर जाने और तनाव खत्म करने और उन्हें अपनी सेहत को नुकसान ना पहुंचाने के लिए कहता. उनकी प्रतिष्ठा और अखंडता त्रुटिहीन थी. मैंने कभी उसके खिलाफ कोई शिकायत नहीं सुनी.
और इन सब चीजों के बाबजूद उस इंसान को मीडिया द्वारा कल (रविरवार) निशाना बनाया गया.
उन्होंने आगे कॉमनवेल्थ सेक्रेटैरिएट ऑर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल को समझते हुए कहा कि ये इंटरनेशल कोर्ट ऑफ जस्टिस से काफी अलग होता है. सीसैट के पदाधिकारी साल में दो या तीन बार मामलों की सुनवाई के लिए बैठते हैं और उनको नियमित सैलरी भी नहीं दी जाती. लिहाजा मीडिया को सभी पहलूओं पर गौर करने के बाद किसी शख्स को कठघरे में खड़ा करना चाहिए.
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Published January 14th, 2019 at 16:27 IST
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