Updated September 11th, 2018 at 16:30 IST
कितना बेमानी लगता है पीएम नरेंद्र मोदी का 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' नारा?
उत्तर प्रदेश का उन्नाव गैंगरेप और जम्मू कश्मीर का कठुआ गैंगरेप की घटना इस बात को और पुख्ता करता है कि समाज में महिला किस भयवाह दौर से गुजर रही है.
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आज से तकरीबन तीन साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में बेटियों को बचाने के लिए 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का नारा दिया था, लेकिन देश में जिस तरह से दिनों- दिन महिलाओं की स्थिति भयवाह होती जा रही है, ऐसी स्थिति में यह नारा कहीं से भी प्रासंगिक नहीं लगता.
ऐसा हम इसलिए कह रहे है महिलाओं के साथ हुई हालिया घटनाओं ने एक बार फिर एहसास दिला दिया है कि हम महिलाओं को कितना सुरक्षित वातावरण दे पाए हैं?
उत्तर प्रदेश के बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर गैंगरेप जैसे संगीन आरोप लगना, इसके बाद जिस तरह का रुख पूरे मामले में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार और स्थानीय प्रशासन द्वारा अपनाया गया, उस पर सवालिया निशान लगना लाजमी है...
कठुआ में 8 साल की लड़की के साथ हुआ गैंगरेप, इसके बाद रेप के आरोपी के समर्थन में एक समूह द्वारा निकाली गई रैली दिखाती है कि किस ओर हमारा समाज बढ़ रहा है.
महिलाओं के यौन उत्पीड़न, छेड़खानी और रेप जैसे संगीन अपराध बहुत आम हो गए है और आज किसी भी उम्र की महिला खुद को सुरक्षित नहीं मानती. हम लोग सख्त कानून की बात तो करते है, लेकिन कितना भी सख्त कानून बना ले, जबतक हम उस कानून का ठीक से अनुसरण नहीं करेंगे, दोषियों को कम समय में कठोर सजा नहीं दिलाएंगे,न्याय व्यवस्था को दुरुस्त नहीं करेंगे, राजनीतिक हस्तक्षेप को कम नहीं करेंगे, तब तक न्यायवादी व्यवस्था की कामना करना भी बेमानी है.
उन्नाव गैंगरेप में क्या हुआ ?
उत्तर प्रदेश के सत्ताधारी पार्टी के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के खिलाफ नाबालिग लड़की के साथ कथित बलात्कार का आरोप लगाया, पूरा मामला उस वक्त सुर्खियों में आया जब नाबालिग पीड़िता ने सेंगर के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई नहीं होने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास के समक्ष रविवार को आत्मदाह का प्रयास किया.
विधायक के भाई तथा अन्य की कथिततौर पर मारपीट के बाद पीड़िता के पिता की करीब एक सप्ताह के बाद न्यायिक हिरासत में मौत हो गई थी.
उन्नाव केस में राजनीतिक हैसियत का गलत इस्तेमाल हुआ?
लेकिन सवाल उत्तर प्रदेश सरकार की मंशा पर भी उठाते है, विधायक पर इतने संगीन आरोप होने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं हुई थी. यह तक की आरोपी विधायक सेंगर की गिरफ्तारी के लिए खुद इलहाबाद हाईकोर्ट को हस्ताक्षेप करना पड़ा. हालांकि अब यह मामला सीबीआई के पास ट्रांसफर कर दिया गया है और विधायक को गिरफ्तार कर लिया गया है, हाईकोर्ट ने सीबीआई से तय समय में जांच पूरा करने के लिए भी कहा है.
कठुआ गैंगरेप मामले में हैवानियत की सारी हदें पार की....
कठुआ गैंगरेप ने पूरे देश को हिला कर रख दिया. कैसे एक घृणित मानसिकता के चलते एक 8 साल की बच्ची के साथ दरिंदगी की सारी हदें पार की गई. जम्मू कश्मीर पुलिस की अपराध शाखा द्वारा अदालत में 15 पृष्ठों की चार्जशीट के मुताबिक बच्ची को जनवरी में एक हफ्ते तक कठुआ जिला स्थित एक गांव के एक धार्मिक स्थल में बंधक बना कर रखा गया था और उससे छह लोगों ने कथित तौर पर बलात्कार किया था.
बच्ची घुमंतू समुदाय से ताल्लुक रखती थी और जम्मू कश्मीर के कठुआ में अपने घर के पास से 10 जनवरी को लापता हो गई थी. मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल ने आठ लोगों को गिरफ्तार किया था, जिसमें दो विशेष पुलिस अधिकारी और एक हेड कांस्टेबल भी शामिल हैं. उस पर साक्ष्य मिटाने के आरोप हैं.
पूरे देश में एक सी तस्वीर दिखती है...
लेकिन यह हाल एक या दो राज्य का नहीं, राष्ट्रिय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी किए गए आंकड़ों पर नजर डालेंगे, तो पता चलता है कि देश के बाकि हिस्सों में भी महिलाओं का हाल ज्यादा जुदा नहीं है.
राष्ट्रिय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े की मानें तो साल 2016 में मध्य प्रदेश में रेप के मामले सबसे ज्यादा दर्ज हुए. जहां 4,882 मामले दर्ज हुए. इसके बाद दूसरा नंबर आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश का आता है, जहां 4,500 से ज्यादा बलात्कर के मामले दर्ज हुए.
इसके बाद 4189 मामलों को साथ महाराष्ट्र का नंबर आता है.
Credit- NCRB
बच्चे भी नहीं है सुरक्षित..
बच्चों पर यौन हिंसा के मामले में भी उत्तर प्रदेश अव्वल है, जहां POCSO एक्ट के तहत 4,954 मामले दर्ज हुए है. इसके बाद 4,815 मामलों के साथ महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर आता है, मध्यप्रेदश के आंकड़े भी ज्यादा जुदा नहीं है.
देश के बड़े शहरों का हाल भी जुदा नहीं...
दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ कुल अपराधों का 33 प्रतिशत हिस्सदारी थी. 1 9 शहरों में कुल 41,761 मामलों में से 13,803 मामले अकेले दिल्ली में दर्ज हुए है. मुंबई में 12.3 प्रतिशत (5,128 मामले) दर्ज हुए. पिछले वर्ष 1 9 शहरों में 20 लाख से अधिक जनसंख्या के वाले शहरों के आकड़े को शामिल किया गया था.
एनसीआरबी के मुताबिक दिल्ली में लगभग 40 प्रतिशत बलात्कार के मामले दर्ज हुए थे और लगभग 29 प्रतिशत मामले पति और उनके रिश्तेदारों द्वारा उत्पीड़न और दहेज को लेकर मौतों के मामले थे.
1 9 शहरों में दिल्ली में आईपीसी से जुड़े अपराध की 38.8 फीसदी हिस्सेदारी थी, इसके बाद बेंगलुरु में (8.9 फीसदी) और मुंबई में 7.7 फीसदी दर्ज किए गए थे.
राष्ट्रीय राजधानी में अपराध का रेट 182.1 था, जबकि पूरे देश में 77.2 अपराध का औसत था.
यह आंकड़े खुद इस बात की तसदीक करते हैं कि आज के भारत में महिलाओं, बच्चों के लिए हम कैसा वातावरण तैयार कर रहे है, हम सबको एक सुर में उठकर विरोध करना होगा. राजनेताओं को एहसास दिलाना होगा कि देश की आम जनता असल में चाहती क्या है?
अंत में, वैसे यहां ये कहना और लिखना बहुत जरूरी है कि नेताओं के लिए नारे गढ़ना तो बहुत आसान है ,लेकिन उस नारे पर नेताओं के लिए अमल करना उतना ही कठिन है.
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Published April 14th, 2018 at 15:21 IST
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