Updated February 18th, 2022 at 14:28 IST
उत्तर प्रदेश सरकार ने CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों को 'नुकसान की भरपाई' के लिए भेजे गए सभी नोटिस लिए वापस
CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों को सरकार के नोटिस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को अदालत को सूचित किया कि उसने सभी नोटिस वापस ले लिया है।
Advertisement
Recovery of Damages to Public and Private Property: CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों को सरकार के नोटिस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को अदालत को बताया है कि उसने 14-15 फरवरी को सभी 273 नोटिस वापस ले लिए हैं। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की वसूली के लिए नए कानून के आधार पर नए नोटिस जारी करने की अनुमति मांगी। इसने अदालत को आश्वासन दिया कि नए नोटिस में सभी निर्देशों का पालन किया जाएगा।
273 नोटिस लिए वापस लिए
पिछले हफ्ते, सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को सभी सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्यवाही वापस लेने की चेतावनी दी थी, जिसे लागू न करने पर कानून के उल्लंघन के लिए कार्यवाही को ही रद्द करने की चोतावनी दी गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि दिसंबर 2019 में शुरू की गई कार्यवाही सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के विपरीत है और इसे कायम नहीं रखा जा सकता। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने आरोपियों की संपत्तियों को कुर्क करने के लिए कार्यवाही करने में खुद एक शिकायतकर्ता, निर्णायक और अभियोजक की तरह काम किया है।
शीर्ष अदालत एक परवेज आरिफ टीटू द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उत्तर प्रदेश में नागरिकता विरोधी (संशोधन) अधिनियम (सीएए) आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए जिला प्रशासन द्वारा कथित प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिस को रद्द करने की मांग की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस तरह के नोटिस एक व्यक्ति के खिलाफ मनमाने तरीके से भेजे गए हैं, जिसकी छह साल पहले 94 साल की उम्र में मृत्यु हो गई थी और कई अन्य लोगों को भी भेजे गए थे, जिनमें 90 वर्ष से अधिक आयु के दो लोग शामिल है।
यूपी में सीएए के विरोध में प्रदर्शन
संशोधित नागरिकता अधिनियम के खिलाफ दिसंबर-जनवरी 2019 के दौरान उत्तर प्रदेश में हिंसा देखी गई थी, जिसमें 21 लोगों की मौत हुई थी और कई घायल हुए थे। यूपी पुलिस ने 5,500 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया था, 1100 को गिरफ्तार किया, 238 से अधिक लोगों को नुकसान की मांग करते हुए नोटिस जारी किए और 'दंगाइयों के नाम' पोस्टर लगाए थे। मेरठ, लखनऊ, बिजनौर, रामपुर, कानपुर, अलीगढ़, गाजियाबाद, वाराणसी, मुजफ्फरनगर, बरेली, लखनऊ जैसे कई स्थानों पर बड़े पैमाने पर हिंसा देखी गई थी। इस दौरान पुलिस ने लाठी चार्ज, आंसू गैस के गोले दागे थे और भीड़ ने सार्वजनिक संपत्तियों में तोड़फोड़ की थी।
कथित दंगाइयों पर नकेल कसते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने तोड़फोड़ करने वालों से सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का आदेश दिया था। जिसे बाद में यूपी विधानसभा ने भी पारित किया था। 'उत्तर प्रदेश रिकवरी ऑफ डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी ऑर्डिनेंस, 2020' ने राज्य सरकार को हड़ताल, बंद, दंगों, सार्वजनिक हंगामा, तोड़फोड़ के विरोध के दौरान सार्वजनिक या निजी संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई करने का अधिकार दिया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय 2020 में यूपी विधानसभा द्वारा पारित कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।
ये भी पढ़ें: जिसका परिवार होता है वही परिवार का दुख दर्द समझ सकता है :अखिलेश
Advertisement
Published February 18th, 2022 at 14:27 IST
आपकी आवाज. अब डायरेक्ट.
अपने विचार हमें भेजें, हम उन्हें प्रकाशित करेंगे। यह खंड मॉडरेट किया गया है।