Updated December 20th, 2018 at 15:20 IST
Republic Summit 2018 | बाबा रामदेव और OYO के फाउंडर रितेश अग्रवाल ने वैश्विक स्तर पर भारतीय कंपनियों की राह पर की चर्चा
रिपब्लिक समिट 2018 के मंच पर पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के ऑनर योग गुरु बाबा रामदेव और OYO के फाउंडर और मालिक रितेश अग्रवाल पहुंचे .
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देश के सबसे हाई प्रोफाइल इवेंट रिपब्लिक समिट 2018 का आगाज हुआ. दो दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत तमाम दिग्गज शामिल हुए. बुधवार को पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के ऑनर योग गुरु बाबा रामदेव और OYO के फाउंडर और मालिक रितेश अग्रवाल पहुंचे , इनसे रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी ने बात की.
कार्यक्रम में अपनी प्रेरणा के बारे में बताते हुए पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के ऑनर योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा कि, मैं एक अनपढ़ किसान के परिवार से आता हूं. और गुरुकुल में पढ़ाई की. लगभग 25 साल पहले योग क्लास शुरु की तो दो लोग मेरे पास योग सिखने आए थे. फिर दो सौ फिर दो हजार और आज तक मेंने 10 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष रुप से योग सिखाया है साथ ही भारत में 100 करोड़ से ज्यादा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से पहुंचा हूं. तो मुझे गर्व है कि इस देश का वनवासी आदिवासी भी मुझसे प्यार करता है.
"मैने कभी रजाई ओढ़ी नहीं गर्म कपड़े पहने नहीं , अभी भी जमीन पर सोता हूं . लेकिन एक सपना है कि जब से मैं छोटा बच्चा था तब से 'भारत माता की जय' बोलता था और स्कूल में बचपन से 'मेरा भारत महान' लिखता था. जबसे मेंने होश संभाला तो देखा कि 'भारत माता की जय' और 'मेरा भारत महान' बोलने से देश महान नहीं बनेगा. मैं इस देश के लिए कुछ ऐसा योगदान दूं कि मेरी की इकॉनामी 2045-50 तक अमरीका से ज्यादा मजबूत हो. मैं एक किसान का बेटा होने के नाते देश के किसान को मजबूत देखना चाहता हूं. इस देश के बिजनेस मेन समेत तमाम सेक्टर के लोगों को मजबूत देखना चाहता हूं. मेरे मूल में एक ही बात है कि मेरे द्वारा इस देश में कम से कम 5 करोड़ से ज्यादा लोगों का प्रत्यक्ष रुप से कुछ भला कर के जाऊं. अभी पतंजलि से लगभग पांच लाख लोगों को प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रुप से जॉब दिया है करीब एक करोड़ किसानों को अपने साथ जोड़ा है. आने वाले समय में लगभग 5 करोड़ किसानों को हम जोड़ेगें.
योग गुरु ने कहा विदेशी कंपनीयों से मेरी खानदानी दुश्मनी नहीं है. क्योंकि मैं किसी बिजनेस कॉर्पोरेट हाऊस से तो हूं नहीं. न ही किसी पार्टी से मेरा कोई पुश्तैनी बेर हैं. एक संकल्प है कि विदेशी कंपनियां मुनाफे , रायल्टी , रॉ मैटीरियल , पेटेंट के नाम पर हर साल अरबों रुपये ले कर जाती है. भारतीय लोगों में क्या कमी है. सारे विदेशी कंपनीयों को चलाने वाले लोग हमारे भारतीय लोग हैं. तो जब सब कुछ हमारा रॉ मैटीरियल हमारा , पैकेजिंग मैटीरियल , प्रयोग करने वाला यूजर हमारा , मार्केट हमारी है तो जब सब कुछ हमारा है तो प्रौफिट भी हमारा होना चाहिए. पंतजली के पीछे का सच यह हैं
रितेश की टाट-पट्टी (रायगढ़ ) से अब तक की सफर
अपनी मेहनत और हौसलों के दम पर OYO को देश की पहली ,चीन की पांचवी और पूरे विश्व में 10 वें होटल चेन के फेहरिस्त में शामिल रितेश अग्रवाल ने अपने प्रेरणा के बार में बताते हुए भावुक हो गए. उन्होंने कहा मैं एक जिले से आता हूं जिसका नाम कुछ ही लोगों को पता होता है. उड़ीसा के रायगड़ा जिला जहां 60 फिसदी से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं और मुझे कोई तकलीफ और पछतावा नहीं है कि मैं वहां से हूं.
रितेश ने आगे कहा , अगर आप एक ऐसे शहर से होते है जिसने कुछ भी नहीं देखा बाहर.. तो आप अभी जहां पर हैं उससे आपको बहुत खुशी होगी. जब तक मैंने बाहर जाकर देश और दुनिया देखा नहीं तब तक मुझे लगा कि यहीं सबसे मोर्डन जगह है. मैंने किशोर अवस्था यानी सातवीं या आठवी कक्षा में सिम कार्ड बेचा करता था, यह मुझे अच्छा लगने लगा . क्योंकि मुझे हमेशा कुछ नया करते रहने की उत्सुकता थी और उस समय पैसों का कोई मोल नहीं होता , इसलिए हमेशा कुछ नया की चाह होती थी.
10 वीं के बाद मैं जब अपने जिले से बाहर निकला तो देखा कि शहरों में लोग कैसे नई -नई सर्विस यूज कर रहे हैं. कॉलेज के दिनों मुझे बिजनेस करने का ख्याल आया. तो मैंने एक वेबसाइट तैयार किया, जहां सस्ते और किफायती होटल्स के बारे में जानकारी दिया करता था. इस वेबसाइट का नाम रखा 'ओरावल'. लेकिन बाद में इसका नाम बदल कर OYO Rooms कर दिया.
रितेश ने कहा अपने टाट-पट्टी (रायगढ़ ) से अब तक के सफर में मैंने ती बातें सिखीं.
1. पहली यह की हमारे देश में पेशेंस की बहुत जरुरत होती है.
2. दूसरा सिख जो मैंने सिखा कि , ''आपके आमने सामने वाले व्यक्ति आकांक्षाओं को पूस रहे.
रितेश ने इसपर आगे कहा, ''मैं जहां से शुरु किया और वापस वहीं चले जाऊं तो मुझे कोई पछतावा नहीं होगा इस जिंदगी में. लेकिन अगर कभी भी ये पछतावा हो कि मैं जो सारे दुनिया भर के लिए करना चाहता था उसके लिए मैंने प्रयास नहीं किया. या उतना जोखिम नहीं उठाया, तब मुझे बहुत तकलीफ होगी. ''
3 . रितेश ने आगे कहा कि तीसरी बात जो 'मुझे हमेशा से लगता आया है कि हॉस्पिटैलिटी और होटल एक ऐसी इंडस्ट्री है जो हमेशा से अमिरो का मैदान हुआ करता है. लेकिन हमारे देश में 1 बिलियन से ज्यादा लोग एक शहर से दुसरे शहर जाते है और उन सबके के लिए किसी ने नहीं सोचा की उनकी जिंदगी कैसे बेहतर की जाए. और ऐसे में मैं अपने परिवार के साथ अकसर छुट्टीयों में घूमने जाया करता था तो उस दौरान सबसे मुश्किल बात यह रहती थी कहां जाकर ठहरें. यह बस भारत के मिडिल क्लास परिवार के लोगों की दिक्कत नहीं हैं बल्कि पुरी दुनिया में ऐसे परिवार हैं और मैं इस चैलेंज को स्वीकार करता हूं.
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Published December 19th, 2018 at 20:04 IST
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