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Updated March 8th, 2020 at 12:58 IST

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस- मिलिए रुस्तम- ए-हिंद का खिताब पाने वाली पंजाब की पहली लड़की स्वर्णजीत कौर से

स्वर्णजीत ने कहा कि पंजाब में लड़कियों को पता भी नही था कि लड़कियों के लिए कुश्ती होती है तब उन्हें कोच राजवीर मिले जिन्होंने उन्हें उत्साहित किया जिसके बाद वह उनसे सीखने के लिए जाते थे

Reported by: Amit Bhardwaj
| Image:self
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आज की लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़को से पीछे नहीं है बल्कि लड़को से आगे निकल अपने माता-पिता के साथ देश का नाम भी रोशन कर रही है इसी तरह की मिसाल पेश कर रही है जिला फतेहगढ़ साहिब में देखने को मिलती है जहाँ फतेहगढ़ जिले की कमान इस समय महिलाओं के हाथ में है वही जिले की लड़कियां भी किसी क्षेत्र में पीछे नही है आज हम आपको एक ऐसी लड़की से मिलाने जा रहे है जो दंगल के अखाड़े में पहलवानों को धूल चटा रही है। 


अगर हौसले बुलंद हो तो हर मंजिल को पाया जा सकता है ऐसे ही हौसले की मिसाल है,संघौल की स्वर्ण जीत कौर, जिसने दंगल को अपनी मंजिल बनाया और इसमें कामयाबी भी हासिल की, दंगल में स्वर्णजीत ने वो मुक़ाम भी हासिल किया जिसे पाने के लिए अच्छे-अच्छे पहलवानों के पसीने छूट जाते है जी हां स्वर्णजीत कौर दंगल मुकाबलों में रुस्तम-ए-हिंद का खिताब हासिल कर चुकी है इसके बाद भारती कुमारी खिताब भी वह अपने नाम कर चुकी है।

स्वर्णजीत की माने तो इस मुक़ाम को हासिल करने में उसके पिता का एहम रोल रहा है जिन्होंने समाज को दरकिनार करते हुए स्वर्ण जीत कौर को अखाड़े में उतरने के लिए प्रोत्साहित किया जिनकी हिम्मत के सदका सवर्णजीत अखाड़े में पुरुष पहलवानों से भी भिड़ गई,अखाड़े में अब सबरजीत बड़े-बड़े पहलवानों को भी धूल चटा देती है।

स्वर्णजीत कौर कुश्ती का वो खिताब पा चुकी है जो शायद पंजाब में किसी लड़की ने 2017 से पहले नही पाया था स्वर्णजीत कौर रुस्तम- ए-हिंद का खिताब पाने वाली पंजाब की पहली लड़की है,स्वर्णजीत कौर की माने जब पंजाब में लड़कियों के लिए रुस्तम- ए-हिंद खिताब का ऐलान हुए तो उसे पाने वाली वह पहली लड़की थी फिर दूसरे वर्ष इसका खिताब का नाम बदल कर भारती कुमारी रखा दिया गया जिसे एक बार फिर उसी ने हासिल किया और वह इस खिताब का श्रेय वह अपने पिता को देती है।


स्वर्णजीत ने कहा कि पंजाब में लड़कियों को पता भी नही था कि लड़कियों के लिए कुश्ती होती है तब उन्हें कोच राजवीर मिले जिन्होंने उन्हें उत्साहित किया जिसके बाद वह उनसे सीखने के लिए जाते थे इसके बाद कुश्ती के प्रति उनकी रुचि बढ़ी और वह इस तरफ जुड़ गई,फिर उसने पीछे मुड़ कर नही देखा वह अब तक रुस्तम-ए-हिंद का खिताब हासिल कर चुकी है इसके बाद भारती कुमारी का खिताब भी उसने अपने नाम किया है इसके अलावा वह इसके इलावा नैशनल व स्टेट सहित इंटर स्टेट में सिल्वर व ब्रॉन्ज सहित कई मैडल जीत चुकी है और इसके इलावा अब वह बीएसएफ में भर्ती हो चुकी है जिसके जरिये वह आल इंडिया पुलिस गेम खेल चुकी है जिसमें उसने ब्रॉन्ज मैडल जीता है।

स्वर्णजीत ने कहा कि इस खिताब को हासिल करने में उसके पिता का बहुत सहयोग रहा है जिन्होंने मुश्किल हालातों में भी उसका हमेशां हौंसला बढ़ाया है कभी उसे रोक नहीं इस हौंसले की बदौलत वह आज इस मुक़ाम पर पहुंची है,उसने बताया कि जब वह दौड़ने के लिए जाती तो लोग उसे पागल बताते थे लोगों को उसका भागना और दंगल करना पसंद नही था उसके रिश्तेदार भी उसके पिता को बोलते थे मगर उसके पिता ने समाज को दरकिनार करते हुए स्वर्ण जीत कौर को अखाड़े में उतरने के लिए प्रोत्साहित किया,आज वही लोग उसकी तारीफ करते है।

स्वर्णजीत के मुताबिक जब वह पहली बार दंगल करने के लिए अखाड़े में उतरी तब लोगों ने उसे देख कर तरह तरह की बातें की मगर जब वह जीती तब सभी ने तालियों से उसका हौंसला भी बढ़ाया,आज भी समाज में लड़कियों के प्रति लोगों की सोच नही बदली जिसे बदलने की जरूरी है क्योंकि लड़कियां आज किसी मे क्षेत्र में लड़कों से पीछे नही है।

वही स्वर्णजीत कौर ने इस बात का दुख जताते हुए कहा कि पंजाब में अनेकों खिलाड़ी मौजूद है जिनमे हुनर भरा पड़ा है मगर सरकार की अनदेखी के चलते वह पीछे है जिला फतेहगढ़ साहिब में ही किसी भी इलाके में लड़कियों के खेलने के लिए न कोई मैदान है और न कोई बढ़िया कोच। इसके इलावा कुश्ती खेलने वाली लड़कियों के लिए मैट तक नही है लड़के तो मिट्टी में भी खेल लेंगेंगे मगर लड़कियां मिट्टी में नही खेल सकती इस लिए सरकार को चाहिए कि यहां एक मैट और अच्छे कोच को रखे तांकि पंजाब के खिलाड़ी भी पड़ोसी राज्य हरियाणा की तरह पंजाब का नाम विश्व भर में चमका सके।


वही स्वर्णजीत की छोटी बहन राजवीर कौर का कहना था कि हमारा इलाका काफी पिछड़ा हुआ है और लोगों की सोच लड़कियों के प्रति आज भी वही है कि लड़कियां चूल्हे तक ही सीमित रहनी चाहिए मगर मेरे पिता ने इस सोच को बदलते हुए उसकी बहन की आगे बढ़ने में मदद की जिसके बाद उसके बहन ने आज यह मुकाम हासिल किया है।  जिसके बाद से  उनके इलाके के लोगों की लड़कियों के प्रति सोच बदलकर रख दिया है।


वहीं स्वर्णजीत को कोचिंग देने वाले महिंदर पाठक ने स्वर्णजीत को सराहना करते हुए कहा कि स्वर्णजीत पहले अकेली उनके पास कोचिंग के लिए आती थी फिर इसके बाद कई लड़कियां उसके साथ जुड़ गई,पर वह कुछ घरेलू कारणों के कारण इतना मुक़ाम हासिल नही कर पाई मगर स्वर्णजीत ने खेल के पूरे संसाधन न होने के बाबजूद भी यह मुकाम हासिल किया जो काबिले तारीफ है,वही उन्होंने सरकार से इस खेल को बढ़ावा देने व इसके लिए जिले में सभी संसाधन मुहैया करवाने की अपील भी की।

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Published March 8th, 2020 at 12:58 IST

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