Updated August 24th, 2023 at 20:04 IST
Chandrayaan-3 की लैंडिंग की सफलता से क्या क्या मिलेंगे फायदे? जानेंवैज्ञानिक ने क्या जवाब दिए
भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में ‘चंद्रयान-3’ की सफलता के बाद वैज्ञानिकों का कहना है कि अब सबसे महत्वपूर्ण चुनौती चांद खानिज एवं धातुओं की उपलब्धता का पता लगाने की होगी।
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Scientist on chandrayaan-3: भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में ‘चंद्रयान-3’ की सफलता के बाद अनंत संभावनाओं के द्वार खुल गए हैं लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि अब सबसे महत्वपूर्ण चुनौती चांद के दुर्गम दक्षिणी ध्रुवीय इलाके में पानी की मौजूदगी की संभावना की पुष्टि और खानिज एवं धातुओं की उपलब्धता का पता लगाने की होगी।
स्टोरी में आगे पढ़ें...
- किन रहस्यों से परदा हटाने में मिलेगी मदद?
- जल की मौजूदगी के बारे में जानने में मदद मिलेगी
वैज्ञानिकों का मानना है कि इन अध्ययनों से चंद्रमा पर जीवन की संभावना एवं सौर मंडल की उत्पत्ति के रहस्यों से परदा हटाने में भी मदद मिलेगी।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर शांतब्रत दास ने को बताया, ‘‘ चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव बेहद दुर्गम और कठिन क्षेत्र है।
इसमें 30 किलोमीटर तक गहरी घाटियां और 6-7 किलोमीटर तक ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र आते हैं। इस इलाके में लैंडिंग करना ही अपने आप में काफी चुनौतिपूर्ण कार्य था।’’
उन्होंने बताया कि चंद्रमा के इस हिस्से में कई इलाके ऐसे हैं जहां सूर्य की किरणें पड़ी ही नहीं हैं । ऐसे में यहां जमे हुए पानी के महत्वपूर्ण भंडार हो सकते हैं। चंद्रयान-1 से इस बारे में संकेत भी मिले थे।
प्रो. दास ने बताया कि ‘प्रज्ञान’ रोवर पर दो पेलोड लगे हैं। इसमें पहला ‘लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप’ है जो चांद की सतह पर मौजूद रसायनों की मात्रा और गुणवत्ता का अध्ययन करने के साथ ही खनिजों की खोज करेगा।
दूसरा पेलोड ‘अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर’ है जो तत्वों एवं अवयवों की बनावट का अध्ययन करेगा और मैग्नीशियम, अल्यूमिनियम, सिलिकान, पोटैशियम, कैल्शियम, टिन, लोहे के बारे में पता लगायेगा।
चंद्रमा पर धातुओं एवं खनिजों की उपलब्धता के बारे में एक सवाल के जवाब में आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर दास ने कहा, ‘‘ मैं वहां धातुओं एवं खनिजों की मौजूदगी से इंकार नहीं कर रहा। लेकिन यह कितनी मात्रा में होगी, यह महत्वपूर्ण विषय है।’’
उन्होंने बताया कि चंद्रमा की मिट्टी की संरचना का अध्ययन करने से यह बात सामने आई है कि इसका औसत घनत्व 3.2 ग्राम प्रति क्यूबिक सेंटीमीटर है जो पृथ्वी के औसत घनत्व 5.5 ग्राम प्रति क्यूबिक सेंटीमीटर से करीब करीब आधा है । चंद्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी के बाद हुई है, ऐसे में वहां भारी धातुओं की मौजूदगी की मात्रा अध्ययन का विषय होगी।
प्रो. दास ने बताया कि चंद्रमा पर आगे अध्ययन से निश्चित रूप से भविष्य के अभियान, वहां जल की मौजूदगी आदि के बारे में जानने में काफी मदद मिलेगी।
वहीं, पुणे स्थित इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीएए) के वैज्ञानिक प्रो. दुर्गेश त्रिपाठी ने बताया कि चंद्रयान-3 मिशन के तहत लैंडर और रोवर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा है और ऐसा अनुमान है कि यहां जमे हुए पानी के भंडार मौजूद हैं।
उन्होंने कहा कि इस मिशन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य पानी की मौजूदगी का पता लगाना रहेगी। इसके अलावा खनिजों की मौजूदगी, उनकी गुणवत्ता और उनकी मात्रा संबंधी अध्ययन भी किया जायेगा।
उन्होंने बताया कि इन अध्ययनों से सौर मंडल की उत्पत्ति से जुड़े अन्य रहस्यों को जानने में मदद मिलेगी। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि पानी जीवन के लिए बहुत जरूरी है और अगर चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता चलता है तो प्रौद्योगिकी का उपयोग करके इसे हाइड्रोजन और आक्सीजन के रूप में अलग किया जा सकता है।
आईयूसीएए के वैज्ञानिक ने बताया कि इससे भविष्य के अभियानों में काफी मदद मिलेगी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), जोधुपर के प्रोफेसर, डा. अरूण कुमार ने बताया, ‘‘ इस अभियान के तहत चंद्रमा की सतह पर भूकंपीय गतिविधि का पता लगाने का प्रयास किया जाएगा । इसके अलावा, इलैक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों से जुड़ा अध्ययन भी किया जाएगा।’’
इसरो ने बुधवार को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक नया इतिहास रचते हुए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर 26 किलोग्राम वजनी रोवर ‘प्रज्ञान’ से लैस ‘विक्रम’ लैंडर मॉड्यूल की ‘सॉफ्ट लैंडिग’ कराने में सफलता हासिल की है।
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चंद्रमा की सतह पर पहुंचे चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल (एलएम) से रोवर ‘प्रज्ञान’ बाहर निकल आया है। रोवर इस दौरान चंद्रमा की सतह पर घूमकर वहां मौजूद रसायनों का विश्लेषण करेगा। लैंडर और रोवर के पास वैज्ञानिक पेलोड हैं जो चांद की सतह पर प्रयोग करेंगे।
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Published August 24th, 2023 at 20:04 IST
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