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Updated March 21st, 2019 at 12:42 IST

मायावती का बड़ा संकेत, कहा- 'केन्द्र में भी पीएम/मंत्री को 6 माह के भीतर लोकसभा/राज्यसभा का सदस्य बनना होता है'

बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए अपने इरादों पर एक बड़ा संकेत दिया है।

Reported by: Ayush Sinha
| Image:self
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बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए अपने इरादों पर एक बड़ा संकेत दिया है। विशेष रूप से इस बात पर कि उनकी प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षाएं हैं। यह घोषणा करने के कुछ ही समय बाद कि वह भारत के संसद के निचले सदन में चुनाव नहीं लड़ेंगी 11 अप्रैल से शुरू होगा।

उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम के ट्वीट पर यकीन किया जाए तो मायावती के पास प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षाएं हैं। वह 1995 में वापस आ गई, जब वह पहली बार यूपी की सीएम बनीं, इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि वह तब विधानसभा की सदस्य नहीं थीं।

मायावती ने ट्वीट कर लिखा है, 'जिस प्रकार 1995 में जब मैं पहली बार यूपी की सीएम बनी थी तब मैं यूपी के किसी भी सदन की सदस्य नहीं थी। ठीक उसी प्रकार केन्द्र में भी पीएम/मंत्री को 6 माह के भीतर लोकसभा/राज्यसभा का सदस्य बनना होता है। इसीलिये अभी मेरे चुनाव नहीं लड़ने के फैसले से लोगों को कतई मायूस नहीं होना चाहिये'

यहां पढ़ें ट्वीट:

इस बीच, मायावती को अपने लोकसभा चुनावों के सहयोगी अखिलेश यादव से मजबूती मिली है। समाजवादी पार्टी प्रमुख ने मायावती के चुनाव नहीं लड़ने के फैसले पर पूछे गए सवाल का कुछ इस तरह जवाब दिया। उन्होंने ये कहा कि यह उनकी पार्टी के प्रयासों को मजबूत करने के लिए उनका व्यक्तिगत निर्णय है। उन्होंने इस दृष्टिकोण से भी सहमति व्यक्त की है कि यदि कोई संसद में जाना चाहता है, तो वे बाद में भी ऐसा कर सकते हैं।

उन्होंने अपने पिता मुलायम सिंह यादव के लिए मायावती के चुनाव प्रचार का भी समर्थन किया है जो मैनपुरी से चुनाव लड़ेंगे। मायावती और सपा के यादव वर्षों से कट्टर विरोधी रहे हैं, लेकि अब दोनों कट्टर विरोधी पार्टी के बीच सुलह हो गई और 'संविधान बचाने के लिए' के नाम पर दोनों एक साथ चुनावी मैदान में दांव आजमाने के लिए उतर रहे हैं।

इसे भी पढ़ें - मायावती के बाद अखिलेश ने दिया राहुल गांधी को झटका, कहा- हम BJP को हराने में सक्षम, कांग्रेस किसी तरह का कन्फ्यूज़न ना पैदा करे

2014 के चुनावों में उनके निराशाजनक परिणाम के संदर्भ में मायावती और अखिलेश के पास बहुत कुछ है। सपा केवल 80 में से पांच सीटें जीतने में सफल रही थी जबकि बसपा एक भी नहीं जीत पाई थी। इस बीच, कांग्रेस ने केवल दो सीटें जीतीं, जबकि भाजपा ने 71 जीत दर्ज की। सपा-बसपा ने इस बार कांग्रेस के साथ सहयोगी होने से इंकार कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप भारत के सबसे महत्वपूर्ण राज्य के लिए तीन-तरफा मुकाबला होने की संभावना है।

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Published March 21st, 2019 at 12:17 IST

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