Updated June 4th, 2023 at 12:13 IST
कवच System होता, तब भी नहीं रुकता हादसा; असलियत से मुंह छिपा रहे सवाल उठाने वाले
Odisha Train Accident: बालासोर में दर्दनाक रेल दुर्घटना के बाद Kavach System के बहाने घटना को राजनीतिक तूल दिए जाने लगा है, लेकिन एक हकीकत ये है कि कवच सिस्टम इस हादसे को रोक ही नहीं सकता था।
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बालासोर रेल हादसे (Balasore Train Accident) की चीख पूरे देश में सुनाई पड़ रही है। भारतीय रेल इतिहास की चौथी सबसे बड़े दुर्घटना में अभी तक 288 लोगों की मौत हो चुकी है। 1000 से अधिक लोग घायल हैं। सैकड़ों लोगों की मौत से पूरा देश गमगीन है। घटना की शुरुआती रिपोर्ट में इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव को वजह बताया जा रहा है, लेकिन हादसे के बाद बार बार चर्चा कवच सिस्टम (Kavach System) की भी हो रही है और दावा किया जा रहा है कि अगर ये सिस्टम ट्रेनों में लगा होता तो शायद आज ये सैकड़ों लोग जिंदा होते।
इस कवच सिस्टम का दुहाई विपक्ष भी दे रहा है और जमकर सरकार को घेरने में लगा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एंटी कोलिशन डिवाइस का जिक्र करते हुए कह रही हैं कि अगर ये डिवाइस लगा होता तो यह हादसा नहीं होता। इसके अलावा राजद जैसे कई दल 'कवच सिस्टम' के बहाने सरकार पर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन एक हकीकत ये है कि कवच सिस्टम असलियत में इस हादसे को रोक ही नहीं सकता था। ऐसा क्यों है, इसके बारे में हम आपको विस्तार से बताते हैं।
पहले आपको कवच सिस्टम के बारे में समझाने की जरूरत है, क्योंकि तभी ये ठीक से समझा जा सकता है कि अगर ये सिस्टम हादसे का शिकार हुई ट्रेनों में लगा होता, तभी भी दुर्घटना को टाला नहीं जा सकता है। समझिए कि आखिर कवच सिस्टम क्या है और ये कैसे काम करता है।
क्या है कवच प्रणाली?
कवच एक स्वचालित सुरक्षा प्रणाली सिस्टम है। इसे ट्रेनों हादसों को कम करने के मकसद से बनाया गया था। वैसे इस पर 2012 में काम शुरू हो चुका था, लेकिन केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद इस तकनीक पर तेजी और पूरे विस्तार के साथ काम हुआ। 2012 में इसे ट्रेन कोलिशन अवॉइडेंस सिस्टम (TCAS) का नाम दिया गया था और बाद में इसे बदलकर कवच रखा गया। दावा किया जाता है कि कवच सिस्टम गलती की संभावनाओं को 10,000 साल में एक के मार्जिन तक कम कर देता है।
कवच सिस्टम कैसे काम करता है?
कवच सिस्टम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) डिवाइस का एक सेट है। इसे लोकोमोटिव में सिग्नलिंग सिस्टम के साथ-साथ ट्रैक पर भी लगाया जाता है। जब कोई ट्रेन रेलवे सिग्नल को जंप कर देती है तो कवच सिस्टम एक्टिव होता है और एक खतरे का मैसेज देता है। मतलब ये कि अगर ट्रेन रेड सिग्नल की अनदेखी करते हुए आगे बढ़ती है, या एक ही ट्रैक पर दूसरी ट्रेन भी आ रही होती है, तो यहां से कवच सिस्टम का काम शुरू होता है। कवच सिस्टम पहले लोको ऑपरेटर ट्रेन को अलर्ट करता है। अगर लोको ऑपरेटर ट्रेन को नहीं रोक पाता है तो कवच सिस्टम ऑटोमैटिक ब्रेक लगाकर गति को नियंत्रित करता है।
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अब हादसे की कहानी समझिए
इसके समानांतर अब आपको बालासोर रेल हादसे को ठीक से समझने की जरूरत है। इस दर्दनाक हादसे की कहानी कुछ इस तरह कि यहां तीनों ट्रेनों में से कोई भी आमने सामने से नहीं भिड़ी थी। जो रेलवे अधिकारी बता रहे हैं, उनके अनुसार, सुबह 7 बजे के आसपास शुरुआत में हावड़ा से चेन्नई जा रही कोरोमंडल एक्सप्रेस (12841) हादसे का शिकार हुई थी। कोरोमंडल एक्सप्रेस चेन्नई के लिए दौड़ते समय बालासोर के बहानगा बाजार इलाके में पटरियों से उतर गई थी।
ये हादसा ठीक उसी जगह हुआ, जहां आउटर लाइन पर पहले से एक मालगाड़ी खड़ी थी। कोरोमंडल एक्सप्रेस के कई डिब्बे डिरेल होने के बाद मालगाड़ी से जा टकराए और कुछ डिब्बे दूसरे ट्रैक पर जा गिरे। ये इत्तेफाक था या समय का फेर कि उसी समय वहां से हावड़ा-बेंगलुरु एक्सप्रेस (12864) का आना हो गया। हावड़ा एक्सप्रेस तेजी से आते हुए पटरियों पर पड़े कोरोमंडल एक्सप्रेस के डिब्बे जा भिड़ी और उसके बाद इतना बड़ा हादसा हुआ कि 288 लोगों की जान अभी तक जा चुकी है।
कवच होता तो भी नहीं रुकती दुर्घटना!
अब हादसे की कहानी और कवच सिस्टम को साथ रखकर देखते हैं तो कवच सिस्टम एक ही ट्रैक पर आने वाली ट्रेनों के हादसों को रोक सकता था, लेकिन बालासोर में ट्रेन के डिरेल होने की वजह से दुर्घटना हुई है। मतलब ये कि कवच सिस्टम होने पर भी हादसे को रोका नहीं जा सकता था। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी यह साफ कर दिया है कि हादसे में कवच से कोई लेना-देना ही नहीं है।
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Published June 4th, 2023 at 11:37 IST
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