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Updated February 1st, 2022 at 16:54 IST

हॉरर कॉमेडी 'फंस गए यारों' को मिला रहा दर्शकों का प्यार; तीसरी लहर के बाद सिनेमाघरों में लौट रहे लोग

कोरोना काल में सबसे ज्यादा नुकसान फिल्म निर्माता, प्रदर्शक और सिनेमाघरों के मालिकों को हुआ है।

Reported by: Digital Desk
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मार्च 2020 से दुनिया भर में लोगों को कोविड-19 की वजह से बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कोरोना काल में सबसे ज्यादा नुकसान फिल्म निर्माता, प्रदर्शक और सिनेमाघरों के मालिकों को हुआ है। पिछले दो सालों में लगभग 18 महीनों तक सिनेमाघर बंद रहे। अक्षय कुमार की 'सूर्यवंशी' के साथ सिनेमाघर दोबारा खुले और जनता फिल्म देखने आई भी, लेकिन दिसंबर में कोरोना का संक्रमण फिर तेजी से फैला और दिल्ली, बिहार और कई राज्यों में थिएटर दोबारा बंद हो गए। थिएटरों के मालिक फिर से परेशान थे, सब के मन में यह सवाल था कि देश में सिनेमाघरों का कोई भविष्य है या नहीं।  

इसी दौरान एक हैदराबादी फिल्म सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई और दर्शकों ने फिर से सिनेमाघरों की तरफ रुख किया। फिल्म का नाम है 'फंस गए यारों', 21 जनवरी को निजाम क्षेत्र में रिलीज हुई यह फिल्म दर्शकों को खूब लुभा रही है और बॉक्स ऑफिस पर भी जमती नजर आ रही है। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के सिनेमाघरों में इसे राजश्री प्रोडक्शंस ने डिस्ट्रब्यूट किया है और फिल्म के जबरदस्त रिस्पॉन्स को देखते हुए अब इसे दूसरे राज्यों में भी रिलीज करने पर विचार किया जाने लगा है। 

क्या है फिल्म में?  
यूएस से हॉरर फिल्म की शूटिंग करने पहुंची एक फिल्म यूनिट होंटेंड रिजॉर्ट में फंस जाती है। रिजॉर्ट का मालिक फिल्म के डायरेक्टर को आगाह भी करता है कि यहां कुछ भी हो सकता है, लेकिन यहीं बात डायरेक्टर को रोमांचित करती है कि वो एक रियल लोकेशन पर फिल्म शूट करने पहुंचा है। पिल्म की शूट शुरू होती है और जंगल के बीचों बीच बने इस रिजॉर्ट में जो कुछ भी होता है वो ना सिर्फ डराता है, बल्कि हंसा-हंसा कर हमारा भरपूर मनोरंजन भी करता है। एक एक कर फिल्म यूनिट के लोग ग़ायब हो रहे हैं, जो बचे हैं उनमें डर का माहौल है और इन सबके बीच डायरेक्टर को अपनी फिल्म भी पूरी करनी है। 'फंस गए यारों' का ताना बाना इसी के इर्द-गिर्द रखा गया है। 

कौन हैं फिल्म के पीछे 
फिल्म की सफलता ने निर्माता-निर्देशक का मनोबल तो बढ़ाया ही है। साथ-साथ उन्हें इस फिल्म को और आगे लेकर जाने के लिए भी उत्सुक कर दिया है। फिल्म के निर्माता धनंजय सिंह मासूम हैं जिन्होंने परपलबुल एंटरटेनमेंट और रूपेश डी. गोहिल के साथ मिलकर इसे बनाया है। 'फंस गए यारों' से पहले धनंजय सिंह मासूम ने दो और फिल्में बना चुके हैं 'फूंतरू' और 'टकटक'। मराठी में बनी इन दोनों फिल्मों को अपार सफलता मिली थी। बतौर निर्माता 'फंस गए यारों' के साथ धनंजय ने अपनी हैट्रिक बना ली है।  

फिल्म की सफलता के बारे में धनंजय कहते हैं, "कोविड के भय की वजह से बहुत सारी बड़ी तेलुगु और तमिल फिल्मों की रिलीज डेट आगे शिफ्ट हो गई थी। इसकी वजह से हमारी फिल्म को एक 'फ्री रन' मिला। 'फंस गए यारों' एक 'कंटेंट' फिल्म थी। पहली बार लोगों को एक हैदराबादी फिल्म में हॉरर और कॉमेडी का मिश्रण देखने को मिला और फिल्म हमने इसे बनाया भी दिल से था। शायद यहीं वजह है कि फिल्म लोगों का मनोरंजन करने में सफल हो रही है और हम अब इसे दूसरे क्षेत्रों में भी प्रदर्शित करने की सोच रहे हैं।" 

'फंस गए यारों' के जरिये कई सारी चीजें पहली बार हैदराबादी फिल्म इंडस्ट्री में हुई है। मिसाल के तौर पर इस मल्टी स्टारकास्ट फिल्म में अलग-अलग राज्यों के अभिनेताओं ने काम किया। फिल्म में अहम भूमिका निभाते हुए दिखे हैं मस्त अली उर्फ सलीम फेकू जो हैदराबाद के सबसे बेहतरीन हास्य अभिनेताओं में से एक माने जाते हैं। उनके साथ फिल्म में दिखे हैं अजीज नासेर, निमेश दिलीपराय, एलेना तुतेजा, रेशमा बारी अथवा नाजिआ खान। बतौर निर्देशक यह युसूफ सूरति की पहली फिल्म है।  

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 'फंस गए यारों' का निर्माण करने की वजह बताते हुए धनंजय कहते हैं, "मैंने हमेशा इस बात को माना है कि फिल्म को किसी एक भाषा या किसी जगह के दायरे में सिमट कर नहीं रहना चाहिए। मैंने अपने करियर की शुरुआत हिंदी टेलीविजन से की। एक दशक से भी ज्यादा मैंने टेलीविजन पर काम किया और कई चर्चित टीवी सीरियलों का लेखन किया। फिर मराठी फिल्मों से बतौर निर्माता अपने सफर की शुरुआत की। मैं अलग-अलग भाषाओं में फिल्में बनाना चाहता हूं। 2006 में रिलीज हुई 'दी अंगरेज' फिल्म बहुत पसंद आयी थी।  उसके बाद मैंने कई और हैदराबादी फिल्में देखीं। हमेशा से मन था हैदराबादी फिल्म बनाने का। 'फंस गए यारों' की सफलता के बाद आगे और भी हैदराबादी फिल्में बनाने का इरादा है।"

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बिहार के एक छोटे से शहर छपरा से आये धनंजय सिंह मासूम ने टीवी पर 'नागिन', 'क्राइम पेट्रोल', 'मन में है विश्वास', 'भागोंवाली बांटे अपनी तकदीर', 'अनुदामिनी', 'गुलजार कहां से लाओगे' और 'बस थोड़े से अनजाने' जैसे कई बड़े सीरियल लिखे और प्रोड्यूस किया।  बहुत सारे टीवी सीरियल पर बतौर क्रिएटिव डायरेक्टर भी काम किया। 2016 में इन्होंने अपनी कंपनी गांववाला कॉन्सेप्ट्स स्टूडियोज एलएलपी को खड़ा किया और बतौर निर्माता अपना सफर शुरू किया। आने वाले समय में निर्माता के रूप में वे अलग अलग भाषाओं और जौनर की फिल्में दर्शकों तक पहुंचाना चाहते हैं।

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Published February 1st, 2022 at 16:52 IST

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