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Updated September 7th, 2018 at 15:10 IST

समलैंगिकता पर फैसला: सोनू निगम ने कहा- 377 को खत्म करना मानवता के लिए बड़ी जीत ..

सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुरानी आईपीसी की धारा 377 के उस हिस्से को बाहर कर दिया जसके तहत समान लिंग वालों के बीच शारीरिक संबंध को अपराध माना जाता था.

Reported by: Gaurav Kumar
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सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुरानी आईपीसी की धारा 377 के उस हिस्से को बाहर कर दिया जसके तहत समान लिंग वालों के बीच शारीरिक संबंध को अपराध माना जाता था. इसमें 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान था. प्रधान न्यायाधीस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे में रखने वाली धारा 377 के हिस्से को तर्कहीन बताया.

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने फैसले में कहा कि दो बालिग एकांत में आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं तो वह अपराध नहीं माना जाएगा. लेकिन बच्चों या पशुओं से संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में बरकरार रहेंगे. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए बॉलीवुड के दिग्गज सिंगर सोनू निगम ने कहा, 'यह एक ऐतिहासिक फैसला है. आज मुझे गर्व महसूस हो रहा है. लेकिन इसके साथ मैं हैरान भी हूं कि भारत जैसे देश में इस कानून को अपने सिस्टम से बाहर करने में इतना समय लिया. हम एलजीबीटी समुदाय के लोगों को लंबें समय से उन्हें आंशिक रूप से भी देखते हैं. मेरे आस पास जानने वाले कई लोग इस समुदाय से आते है और वह एक आम इंसान की तरह अच्छी आत्माएं हैं. लेकिन ऐसे लोग वर्षों तक पीड़ा, कलंक और डर के साए में रहे.

इस पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि समलैंगिक समुदाय को भी आम नागरिकों की तरह बराबर अधिकार हासिल हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'एक दूसरे के अधिकारों का सम्मान करना सर्वोच्च मानवता हैं. समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखना बेतुका हैं. इसका बचाव नहीं किया जा सकता हैं. इतिहास में लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर समुदाय को वर्षों तक पीड़ा, कलंक और डर के साए में रखने के लिए माफी मांगनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि, सबकी अपनी पहचान है हर व्यक्ति को गरिमा से जीने का हक, सेक्शुअल रुझान प्राकृतिक है. इस आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और 377 इसका हनन है.

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Published September 7th, 2018 at 10:32 IST

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